Posts

कौन आएगा किसको आना है वक़्त  मरहम  है  दर्द  शाना  है जीतने की है शर्त और ज़िद भी अब  तो रिश्तों को हार जाना है ले के फ़रियाद आए जिसके ख़िलाफ़ वो   ही   मुंसिफ़  है  वो  ही  थाना  है भूल    जाती    हैं    शक़्ल    दीवारें कितना मुश्किल ये घर चलाना है दर-ब-दर फिर रहा हूँ ले के वफ़ा मुझको   दुश्मन   किसे  बनाना  है चाहिए  सिर्फ़ एक अदद कंधा हर किसी का कोई निशाना है मौत सा'नी है ज़िन्दगी अव्वल दोनों  मिसरे  में  रब्त  लाना है

एक गज़ल

हुई कुछ ख़ता ग़र तो हमको बता दो। न रहकर यूँ ख़ामोश हमको सज़ा दो।। कहो ज़िन्दगी से सितम कुछ करे कम। नहीं तो ख़ुदा मुझको पत्थर बना दो।। जले घर तुम्हारा न उस आग में ही। कभी नफरतों को नहीं तुम हवा दो।। वो चंदा फ़लक पर ही जल भुन उठेगा। जो मुखड़े से तुम अपने परदा हटा दो।। भरी रौशनी से रहे उनकी राहें। मुझे उनकी राहों का दीपक बना दो।। गए जो जहां से न लौटेंगे वापस। भले राह में चाहे पलकें बिछा दो।। न छोटा बड़ा कोई , इंसान हों सब। चलो मिल के सब ऐसा मज़हब बना दो।।

एक ख़याल

याद की वो बदलियाँ हुईं हैं आज फिर सघन भागता है आज फिर अतीत की तरफ ये मन बचपने के खेल साथी मीत वो गली डगर ज़िन्दगी थी छाँव जैसी उम्र की न थी तपन

एक गज़ल

आपसे   राब्ता   भी  नहीं। आपसे हम खफ़ा भी नहीं।। हैं   नहीं    फासले    दरमियां। मिलने का सिलसिला भी नहीं।। इस  क़दर  दूर  वो  हैं   हुए। पहुँचे उन तक सदा भी नही।। निस्बतें अब नहीं दरमियां। पर हुए हम जुदा भी नहीं।। प्यार रह जाए बन इक घुटन। हर घड़ी  आजमा  भी  नहीं।। ऐब  सबके  गिनाते  फिरे। कोई इतना खरा भी नहीं।। बेवफ़ा जितनी  है  ज़िन्दगी। उतनी शायद कज़ा भी नही।। कोई वादा खुशी में न कर। क्रोध में  फैसला  भी  नहीं।। सोई   इंसानियत   दे   जगा। आता वो जलजला भी नहीं।।