कौन आएगा किसको आना है वक़्त मरहम है दर्द शाना है जीतने की है शर्त और ज़िद भी अब तो रिश्तों को हार जाना है ले के फ़रियाद आए जिसके ख़िलाफ़ वो ही मुंसिफ़ है वो ही थाना है भूल जाती हैं शक़्ल दीवारें कितना मुश्किल ये घर चलाना है दर-ब-दर फिर रहा हूँ ले के वफ़ा मुझको दुश्मन किसे बनाना है चाहिए सिर्फ़ एक अदद कंधा हर किसी का कोई निशाना है मौत सा'नी है ज़िन्दगी अव्वल दोनों मिसरे में रब्त लाना है
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एक गज़ल
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हुई कुछ ख़ता ग़र तो हमको बता दो। न रहकर यूँ ख़ामोश हमको सज़ा दो।। कहो ज़िन्दगी से सितम कुछ करे कम। नहीं तो ख़ुदा मुझको पत्थर बना दो।। जले घर तुम्हारा न उस आग में ही। कभी नफरतों को नहीं तुम हवा दो।। वो चंदा फ़लक पर ही जल भुन उठेगा। जो मुखड़े से तुम अपने परदा हटा दो।। भरी रौशनी से रहे उनकी राहें। मुझे उनकी राहों का दीपक बना दो।। गए जो जहां से न लौटेंगे वापस। भले राह में चाहे पलकें बिछा दो।। न छोटा बड़ा कोई , इंसान हों सब। चलो मिल के सब ऐसा मज़हब बना दो।।
एक गज़ल
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आपसे राब्ता भी नहीं। आपसे हम खफ़ा भी नहीं।। हैं नहीं फासले दरमियां। मिलने का सिलसिला भी नहीं।। इस क़दर दूर वो हैं हुए। पहुँचे उन तक सदा भी नही।। निस्बतें अब नहीं दरमियां। पर हुए हम जुदा भी नहीं।। प्यार रह जाए बन इक घुटन। हर घड़ी आजमा भी नहीं।। ऐब सबके गिनाते फिरे। कोई इतना खरा भी नहीं।। बेवफ़ा जितनी है ज़िन्दगी। उतनी शायद कज़ा भी नही।। कोई वादा खुशी में न कर। क्रोध में फैसला भी नहीं।। सोई इंसानियत दे जगा। आता वो जलजला भी नहीं।।